नन्दों से पूर्व मगध साम्राज्य प्रान्तीय शासन व्यवस्था
प्रान्तीय शासन व्यवस्था -
मगध साम्राज्य में अनेक प्रदेश थे । एक प्रान्त की शासन व्यवस्था की सुव्यवस्थित देखरेख के लिए एक प्रान्तपति होता था जिसे मॉडलिक कहते थे । प्रान्तपति के पद पर राजकुमारों को नियुक्त किया जाता था। प्रान्त ग्रामों के बंटे हुए थे। ये राज्य की महत्त्वपूर्ण इकाई थे । ग्राम में एक मुखिया नियुक्त होता था जिसे ग्रामिक या ग्राम भोजक कहते थे । ग्रामों से सम्राट प्रत्यक्ष सम्पर्क भी स्थापित करता था । गाँवों से सीधे सम्पर्क के विषय में एक प्रकरण है कि जब माँडलिक या प्रान्तपति प्रद्योत ने षडयन्त्र रचा तो उसने सभी ग्रामिकों की एक सभा बुलाई एवं उनको अपने विश्वास में लिया लेकिन प्रान्तपति प्रद्योत का यह षडयन्त्र विफल रहा । इस तरह ग्राम योजकों की भी शासन व्यवस्था को सुव्यवस्थित करने में महत्ती भूमिका थी ।।प्रशासनिक कार्य - बिम्बिसार ने राज्यों में अपने शासन को व्यवस्थित करने हेतु यातायात के साधनों के सुधार की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने सड़कों का निर्माण कराया, उसने कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु सिंचाई की आवश्यकता महसूस करते हुए नहरें बनवाई थीं, सम्राट ने अपने साम्राज्य में वास्तुकला विदों को प्रोत्साहन दिया था । हर्यक युग का विख्यात चिकित्सक जीवक बिम्बिसार के राज्य के अधीन था। इसी प्रकार विख्यात वस्तुकार महागोबिन्द भी उसके राजदरबार की शान था। । दण्ड व्यवस्था - बिम्बिसार की शासन व्यवस्था में दण्ड नियम काफी कड़े थे। जघन्य अपराध करने वाले व्यक्तियों को बन्दी बनाने के साथ साथ शारीरिक दण्ड जैसे कोड़े लगाना, जीभ का काटना, हड्डी पसली तोड़ देना और गर्म लोहे से उसके शरीर पर दाग लगाना आदि थे। इनके अतिरिक्त अपराधी को मृत्यु दण्ड भी दिया जाता था जिसमें कि फांसी लगाना, सिर काट देना आदि थे राजा ऐसे अधिकारियों को भी दण्ड देता था जो कि ऐसी मंत्रणा दे जिससे कि राजा और साम्राज्य दोनों का अहित होता हो और राज्य के विस्तार एवं शासन व्यवस्था के सुसंचालन हेतु दी जाने वाली मंत्रणा हेतु अधिकारियों को सम्मानित भी किया जाता था।
बिम्बिसार का धर्म -
बिम्बिसार की धार्मिक नीति उदार थी । वह सभी धर्मों के आचार्यों का सम्मान करता था । इसलिए विभिन्न धर्मों के मानने वाले सम्राट को अपने ही धर्म का अनुयायी समझते थे । जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार सम्राट बिम्बिसार जैन धर्म में आस्था रखते थे । जैन धर्म के प्रवर्तक महावीर स्वामी का सम्राट बिम्बिसार से पारिवारिक सम्बन्ध भी था। बिम्बिसार की रानी चेलना महावीर स्वामी की भक्त थी और जैन धर्म में उसकी श्रृद्धा थी। सम्भव है इसी कारण बिम्बिसार पर जैन धर्म का प्रभाव पड़ा और सम्राट ने अपनी सम्बन्धियों एवं कर्मचारियों के साथ महावीर स्वामी से भेंट की थी और जैन धर्म की , ली थी ।| बौद्ध ग्रंथों से विदित होता है कि बिम्बिसार पहले वैदिक धर्म का अनुयायी था। जल महात्मा बुद्ध पहली बार राजगृह आये तो बिम्बिसार महात्मा बुद्ध के व्यक्तित्व से प्रभावित हुआ परन्तु उसने तुरंत ही बौद्ध धर्म स्वीकार नहीं किया । बिम्बिसार के पुरोहित महाकश्यप महात्मा बुद्ध द्वारा वाद विवाद में परास्त होने के पश्चात अपने सैकड़ों शिष्यों के साथ बौद्ध धर्म को समर्पित हो गये। इसके पश्चात जब बुद्ध पुन: मगध में आये तो बिम्बिसार ने बद्ध से भेंट की थी तथा उनको वेलिवन तथा अतुल धन भेंट किया था। जनश्रुति के अनुसार उसने बौद्धों को कई करों से छूट दे दी थी बौद्ध ग्रंथों के अनुसार बिम्बिसार तथा उसकी पत्नी क्षेमा ने बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था। उसकी पत्नी न केवल स्वयं बौद्ध धर्म की अनुयायी थी बल्कि उसने कौशल के राजा प्रसेनजित को भी बौद्ध धर्म का उपदेश दिया था। इसी तरह सम्राट बिम्बिसार भी अपने जीवन पर्यन्त बौद्ध धर्म के उत्थान में लगा रहा। बिम्बिसार ने अपने चिकित्सक जीवक की सेवाएं भी बौद्ध संघ को उपलब्ध करा दी । यह भी कहा जाता है कि बिम्बिसार ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए कई बिहार बनवाये । डा.वी.पी सिन्हा का मत है कि सभी प्रमाण यह सिद्ध करते हैं कि बिम्बिसार धर्मनिष्ठ बौद्ध था । ब्राह्मण उसे हिन्दू धर्म का अनुयायी मानते थे ।
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