मगध का उदय किन परिस्थितियों में हुआ ? इसमें बिम्बिसार के योगदान को मूल्यांकन कीजिए ?
What led to the rise of Magadha? Give an estimate of the Contribution of Bimbisara to it.राजदूतों के जिन्हें राजा मेघवर्ण ने समुद्र गुप्त के पास तथा राजा किआचे (कस्सप) ने 527 ई. में चीन भेजा था । विनिमय के सम्बन्ध में उपलब्ध चीनी विवरण भी बुद्ध के परिनिर्वाण की तिथि 486 ई.पू. या 483 ई.पू. के पक्ष में बताते हैं फिर भी गीगर की तिथि परम्परा द्वारा स्पष्टतः स्वीकृत नहीं है। इसलिए कैण्टन अनुश्रुति के अनुसार जो तिथि है वह कामचलाऊ तौर पर अशोक तथा उसके पहले समय के लिए स्वीकार की जा सकती है। इस गणना के अनुसार बिम्बिसार के राज्यारोहण की तिथि 545 ई.पू. होगी। “अल्प अवस्था में सिंहासन पर बैठने के अल्प समय में बिम्बिसार ने अपने साम्राज्य के विस्तार और प्रशासन को बढ़ा लिया । राजनीतिक सम्बन्धों तथा विजय दोनों ही से उसने मगध के महत्त्व को बढ़ाया। आरम्भ में मगध की पुरानी राजधानी गिरिव्रज थी जो वसुमति और वृहार्थपुर के नाम से भी प्रसिद्ध थी । तत्कालीन मगध राज्यों को साम्राज्य में परिवर्तित करने का कार्य बिम्बिसार ने किया । यह एक कठिन कार्य था अतः बिम्बिसार का यह कार्य शंका रहित था ।
वैवाहिक सम्बन्ध -
साम्राज्य की विस्तार आकांक्षा रखने वाला बिम्बिसार एक उच्च कोटि का राजनीतिज्ञ, वीर तथा कुशल शासक था, राज्यों के आपसी संघर्षों के उस युग में मगध को निरापद तथा शक्तिशाली राज्य बनाने के लिए बिम्बिसार ने अनेक राजवंशों से वैवाहिक सम्बन्धों की कूटनीति के द्वारा अपनी शक्ति को सुदृढ़ बनाने का निश्चय किया, ऐतिहासिक प्रमाण निम्नलिखित विवाहों के बारे में उपलब्ध हैं - (1) कौशल सम्राट प्रसेनजित की बहन कोशला देवी के साथ बिम्बिसार का विवाह हुआ । इस वैवाहिक संबंध से मगध को कौशल जैसे शक्तिशाली राज्य की मित्रता प्राप्त हो गई । कौशल नरेश ने एक लाख वार्षिक आय का काशी प्रदेश दहेज में | दिया था इससे मगध राज्य के क्षेत्रफल में वृद्धि हुई ।(2) बिम्बिसार ने वैशाली की राजकुमारी चेतना के साथ विवाह किया । वैशाली नरेश का नाम चेतक था । बिम्बिसार से तत्कालीन भारत के विख्यात युद्ध प्रिय | लिच्छवियों की मैत्री उपलब्ध हो गई।
(3) गाँधार प्रदेश के भद्र राज्य के राजा की पुत्री खेमा के साथ विवाह कर बिम्बिसार ने अपने सम्बन्धों का ताँता पश्चिमी भारत तक पहुंचा दिया था।
(4) तिब्बती सूत्रों से एक और विवाह होने का भी पता चला है। उस रानी का नाम वांसवी या वासवती दिया गया है। किन्तु इसके माता-पिता, स्थान आदि का कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसके विषय में यह कहा जाता है कि बिम्बिसार के पुत्र ने उसे बन्दी लिया तो इस रानी ने उसकी बहुत सेवा की थी किन्तु इस सम्बन्ध में। जैनागमों की राय है कि वह रानी चेलना थी ।
डा.मुकर्जी का मत है कि उसके कूटनीतिक और विवाह सम्बन्धों ने उसे 5 विस्तारवादी नीति की क्रियान्विति में बहुत सहायता दी होगी।”
बिम्बिसार द्वारा मगध का साम्राज्य विस्तार -
राज्य विस्तार हेतु बिम्बिसार ने शक्तिशाली राज्यों के साथ मै सम्बन्ध तो स्थापित किये ही साथ ही अपने सेना को सुदृढ़ कर राज्यों की शक्ति क्षीण कर एवं उन्हें पराजित कर अपने राज्य में मिला लिया । बिम्बिसार ने अपने शासन काल में अनेक युद्ध किये। डा. राजबली पाण्डेय के अनुसार बिम्बिसार ने अनेक राजाओं को परास्त कर अपने साम्राज्य को पूर्वोत्तर में विस्तार किया। अंग राज ब्रह्मदत्त को पराजित करके उसने अंग को अपने राज्य में मिला लिया । कूटनीतिक क्षेत्र में वह चतुर और सफल था । वत्स, भद्र , गान्धार और कम्बोज आदि राज्यों से उसने अपने सम्बन्ध स्थापित किये । डा.महाजन ने लिखा है कि “दीर्घ निकाय और महावग्ग से अंग विजय की पुष्टि होती है” जैन लेखक हेमचन्द्र का मत है। कि अंग विजय से बिम्बिसार की समृद्धि अवश्य ही बढ़ी । बिम्बिसार की अन्य विजयों का विवरण उपलब्ध नहीं है किन्तु इतिहासकारों का मत है कि उसने कुछ अन्य प्रदेशों को भी विजय किया। महाबग्ग के अनुसार उसके राज्य में 80 हजार ग्राम थे जिनका क्षेत्रफल 300 योजन अर्थात 2700 वर्ग कि.मी. आंका जाता है उसके राज्य में कई संघ राज्य भी शामिल थे। मजूमदार, राय चौधरी एवं दत्त के अनुसार “आरम्भ से ही बिम्बिसार ने राज्य विस्तार की नीति का अनुसरण किया । इसे कुछ ऐसी सुविधाएं प्राप्त थी जो इसके समकालीन राज्यों को प्राप्त नहीं थी, यह एक ठोस राज्य का शासक था, जो चारों ओर से पहाड़ों और नदियों से घिरा हुआ था। इसकी राजधानी गिरिव्रज पाँच पहाड़ियों से घिरी थी” बुद्ध घोष द्वारा लिखित अटठकथा में ऐसा उल्लेख मिलता है कि मगध राज्य का सीमा विस्तार बिम्बिसार के शासन काल में दुगुना हो गया था।बिम्बिसार द्वारा मैत्री सम्बन्ध -
बिम्बिसार ने अपने पड़ौसी सम्राटों से मैत्री सम्बन्धी नीति भी अपनायी जो उसकी राज्य विस्तार नीति में सहायक सिद्ध हो सकी ।।| (1) तक्षशिला के सम्राट को जब संकट कालीन परिस्थिति ने घेर लिया तो नरेश ने । अपने राजदूत को बिम्बिसार से मदद प्राप्ति के लिए भेजा। बिम्बिसार ने राजदूत के साथ मित्र भाव प्रदर्शित करते हुए कूटनीति से काम लिया, उसने अन्य राजाओं से शत्रुता करना अपने हित में न समझ कर उसे सैनिक सहायता का स्पष्ट वचन नहीं दिया लेकिन राजदूत का आदर सत्कार करके मित्रता का भाव प्रदर्शित किया।
| (ii) अवन्ती का नरेश प्रद्योत बीमार पड़ा तो बिम्बिसार ने मित्रता की पहल कर अपने । राज्य वैद्य को अवन्ती नरेश के इलाज करने हेतु भेजा, बिम्बिसार की इस पहल का स्वभावतः । अच्छा प्रभाव पड़ा होगा और दोनों में मित्रवत सम्बन्ध मजबूत हुए होंगे ।
केन्द्रीय शासन व्यवस्था - बिम्बिसार की शासन व्यवस्था सुव्यवस्थित थी। शासन कार्य में योग देने हेतु अधिकारियों की चार श्रेणियाँ थी, उपराजा महामात्र (मंत्री), प्रान्तपात, जिलाधिकारी सम्मिलित थे ।
प्राप्त जानकारी के आधार पर शासन की निम्नलिखित व्यवस्था का उल्लेख मिलता है । ।
(i) उपराजा - यह सम्राट के पश्चात का सबसे उच्च पद था । उपराजा एक तरह से राजा के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता था।
(ii) संवत्थक महामात्र (मन्त्रि) - महामात्र (मंत्री) सामान्य प्रशासन की देखभाल करते । थे, इनकी तुलना आधुनिक मंत्री से की जा सकती है।
(iii) सनानायक महामात्र - सैन्य संचालन की सम्पूर्ण जिम्मेदारी सेनानायक महामात्र पर | होती थी यह सेना का सर्वोच्च अधिकारी होता है।
(iv) व्यावहारिक महामात्र - व्यावहारिक मंत्री न्याय से सम्बन्धित कार्य करता था। राज्य की न्याय व्यवस्था की समस्त देखरेख इसी के अधीन थी। बिम्बिसार शासन व्यवस्था में ऐसी व्यवस्था थी कि फैसले तुरंत होते थे । (V) उत्पादन महामात्र - यह राज्य के समस्त उत्पादन एवं उस पर कर वसूली की व्यवस्था
करता था।
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